लेखनी प्रतियोगिता -21-Jul-2023 "डोली बनी अर्थी "
"डोली बनी अर्थी"
बेटी की खुशियों की ख़ातिर
ना जाने कब से छोटी छोटी चीजों को
जोड़ा कितनी चाहत से
सोचा था जिस दिन ब्याह रचाएंगे
झोली उसकी खुशियों से
हर रंग से भरते जाएंगे
छोटी से अब वो बड़ी हुई
आई अब वारी शादी की
ढूंढा एक वर ऐसा था
पढ़ा लिखा और काबिल अफसर था
थी मांग तो उसकी बहुत बड़ी
पर बेटी की खातिर सब कुछ
हामी हमने भर दी थी
था दिल तो बहुत अमीर बड़ा
बेटी से बड़ कर कुछ ना लगता था
जान जो थी वह हम सब की
सारी की सारी मांगे हमने
अब उसकी पूरी कर दी थी
आई बरात दरवाजे पर
अड़ गया वो अब तो गाड़ी पर
गाड़ी की अब औकात नहीं
यह बात भला हम कैसे कह दे
बेटी यह सब कुछ जान गई
मन ही मन में पहचान गई
दर्द से अब बेहाल हुई
मां बाबू की इस हालत की खुद ही वो जिम्मेदार हुई
सुनकर सारी बातें वो
दौड़ लगाई आंगन से जा पहुंची अपने कमरे में
दरवाजा उसने बंद किया
खुद को उसने बस खत्म किया
एक लेटर बाबा के नाम लिखा
क्यों हुआ जन्म मेरा बाबू
की कमर तुम्हारी टूट गई
पगड़ी लेकर लाचार खड़े
क्यों बेटी की खुशियों की खातिर
स्वाभिमान को अपने भूल गए
लानत है ऐसे जीवन पर
है कसम मुझे बाबू मेरे
ना मैं तेरी पगड़ी झुकने दूंगी
ना तुझको गैरों के आगे
सर अपना कदमों में रखने दूंगी
था जिस आंगन में अब तक
खुशियों का एक पैगाम बड़ा
उठने वाली थी डोली इक बेटी की आंगन से
बन गई है अब अर्थी उसकी
खुशियां बदली है मातम में
हर किसी की आंखों में आंसू है
हर कोई दर्द से बिलख रहा
अपने आप को कोस रहा
कैसे डोली बनी है अर्थी में
ये सोच के हृदय से दहाड़ रहा है ...???
मधु गुप्ता "अपराजिता"
Abhinav ji
22-Jul-2023 09:22 AM
Very nice 👍
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Madhu Gupta "अपराजिता"
22-Jul-2023 01:59 PM
Thank you so much🙏🙏
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
22-Jul-2023 07:59 AM
बेहतरीन और खूबसूरत रचना
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Madhu Gupta "अपराजिता"
22-Jul-2023 01:59 PM
बहुत बहुत शुक्रिया 🙏🙏
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Varsha_Upadhyay
22-Jul-2023 01:49 AM
बहुत खूब
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Madhu Gupta "अपराजिता"
22-Jul-2023 01:58 PM
बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏
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